सरकार भी है, इंसान भी है बस इस संसार मे मानवता नही है जिसके कारण यह पृथ्वी शर्मशार है। महामारी जात धर्म ऊंच नीच कुछ नही देखती, बस इंसान मरते हैं। लेकिन कोरोना जैसी विषयव्यापी महामारी के कारण इंसानियत मरते हुए देखा जा रहा है। आखिर अपने ही देश मे ये गरीब, मजदूर बोझ कैसे हो गए। बहुत से ऐसे मजदूर है जिसने अपनी पूरी जिंदगी कंपनी को दे दी है। आज वहीं शाहूकार उस मजदूर को दो वक्त की रोटी नही दे रहाहै कितना खुदगर्ज हो गया है इंसान। चंद पैसे कमाने के लिए इंसान दूसरे प्रदेशो में बहुत सारे सपने संजो कर जाता है। लेकिन सरकारों की नाकामियों के कारण पता नही कितने मजदूर गरीबो की जान चली गई। दूसरे राज्य में वो मजदूर मजबूर हो गए सिर्फ सरकारों के नापाक इरादों से। कोरोना से तो हम जीत जाएंगे लेकिन जिनकी जाने गयी भूख और गरीबी से उनके परिवार को हम किस जीत की बधाई देंगे। मेरा देश सच मे बदल रहा है। फिरंगियों ने जिस तरह गरीबो का खून पिया था आज भी वही स्थिति उतपन्न हो गई है। सरकार को नाकामी के लिए बधाई
आखिर अपने ही देश मे ये गरीब, मजदूर बोझ कैसे हो गए।
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